वे कणिकामय या तन्तुवत् (Granular or Filamentous) रचनाएँ जो प्रोटोजोआ, जन्तु तथा पादप कोशा के कोशिकाद्रव्य में पाई जाती हैं, Mitochondria क्या है? [(माइटो-धागा (Thread) + कॉन्ड्रियॉन कणिका (Chondrion-granule) कहलाती हैं।
माइटोकॉन्ड्रिय को कोशिका का उर्जाधर (Power house) कहते हैं। वे सभी कोशिकाएँ जिनमें वायवीय श्वसन (Aerobic respiration) का सम्पादन होता है, उसमें माइटोकॉन्ड्रिया की निर्विवाद रूप से उपस्थिति होती ही है। यह कोशिकीय श्वसन स्थल (Site of respiration) की तरह कार्य करता है।
यह ऊर्जा उत्पादन के क्रम में ATP के संश्लेषण को सम्भव बनाता है जो कि ऊर्जा मुद्रा की तरह ऊर्जा का कोशिका के विभिन्न स्थलों में पारेषण अर्थात् वितरण का कार्य करता है तथा इसीलिए इसे विद्युत गृह या उर्जाधर की संज्ञा दी जाती है।
माइटोकॉन्ड्रिया का सर्वप्रथम अवलोकन कोलिकर (Kolliker, 1850) नामक वैज्ञानिक ने किया। माइटोकॉन्ड्रिया को फिलिया (Filia) नाम फ्लेमिंग (Flemming, 1882) ने प्रस्तुत किया। एल्टमैन (Altman, 1890) ने इसके लिए बायोप्लास्ट (Bioplast) नाम को प्रस्तावित किया। माइटोकॉन्ड्रिया नाम बेण्डा (Benda) के द्वारा दिया गया, इन्होंने ही सर्वप्रथम माइटोकॉन्ड्रिया को विस्तृत तथा विवरणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया।
माइटोकॉन्ड्रिया के अभिरंजन हेतु जेनस ग्रीन-B रसायन का उपयोग किया जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया के लिए अल्प प्रचलित नामों में प्लास्टोसोम (Plastosome) कॉण्डियोसोम्स (Chondriosomes), वर्मीक्यूल्स (Vermicules) आदि प्रमुख हैं। 1934 में बेन्सले (Bensley) व हॉयर (Hoerr) द्वारा सबसे पहले यकृत (Liver) में माइटोकॉण्ड्रिया को पृथक् किया गया, तभी विभिन्न जैवरासायनिक (Biochemical) विधियों द्वारा माइटोकॉण्ड्यिा का विस्तृत अध्ययन सम्भव हो सका। एक कोशिका की समस्त माइटोकॉण्ड्रिया सामूहिक रूप से काण्ड्यिोम (Chondriome) कहलाती है।
माइटोकॉण्डिया की आकारिकी (Morphology of mitochondria)
माइटोकॉण्ड्यिा का अध्ययन जीवित कोशिकाओं की अपेक्षा संवर्धित (Cultured) कोशिकाओं में सरलतापूर्वक किया जा सकता है। इनका अध्ययन फेज कॉन्ट्रास्ट (Phase contrast) सूक्ष्मदर्शी द्वारा किया जाता है। सुविधाजनक अध्ययन के लिए इन्हें जेनस ग्रीन (Jenus green) द्वारा अभिरंजित किया जाता है जिससे ये हरिताभ नीले (Greenish blue) हो जाते हैं।
माइटोकॉण्डिया का आकार (Shape)
माइटोकॉण्ड्रिया का आकार भिन्न-भिन्न होता है किन्तु सामान्यतः ये कणिकामय या तन्तुवत् (Granular or filamentous) होते हैं। कुछ विशेष कार्यिक अवस्थाओं (Functional stages) में ये विशेष आकार ले लेती है जैसे एक लम्बी माइटोकॉण्ड्रिया का एक सिरा फूलकर मुग्दर के आकार का (Club shaped) हो जाता है और यदि ये फूले हुए सिरे खाली होते हैं तो आकार टैनिस के रैकेट (Tennis racket) के समान दिखाई देता है। समान कार्य करने वाली कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्यिा का आकार समान होता है। कुछ कोशिकाओं में लम्बाई 7 माइक्रॉन तक हो सकती है।
परिमाण (Size)
माइटोकॉण्ड्रिया की औसत लम्बाई 3-4 माइकॉन एवं औसत व्यास 0.5-1.0 माइक्रॉन होता है।
संख्या (Number)
माइटोकॉण्ड्रिया सभी यूकेरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाई जाती हैं किन्तु प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में अनुपस्थित होती हैं। माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या कोशिका के प्रकार तथा कार्यिक अवस्था पर निर्भर होती है।
जिन कोशाओं में उपापचय (Metabolism) अधिक होता है उनमें माइटोकोन्ड्रिया की संख्या अधिक व जिन कोशाओं में कम होता है, संख्या कम पाई जाती है। एक साधारण यकृत कोशा (Liver cell) में 1000-1600 माइटोकॉण्ड्रिया होती हैं। कुछ प्रोटोजोआ में ये 5,00,000 तक होती हैं।
वितरण (Distribution)
साधारणतः माइटोकॉण्ड्यिा कोशिकाद्रव्य में समान रूप से वितरित होती हैं। किन्तु कभी- कभी ये केन्द्रक के चारों ओर अथवा परिधीय कोशिकाद्रव्य (Peripheral cytoplasm) में एकत्र हो जाती हैं।
इसी प्रकार जब कोशिकाइव्य में ग्लाइकोजन व वसा की मात्रा अधिक हो जाती है तो वे माइटोकॉण्डिया को अपने स्थान से हटा देते हैं। समसूत्री विभाजन (Mitosis) के समय माइटोकॉण्ड्रिया स्थिण्डल (Spindie) के आस-पास एकत्रित हो जाती है।
परसंरचना (Ultrastructure)
माइटोकॉण्ड्यिा का बाहरी आवरण दो कलाओं (Membrane) का बना होता है। बाहरी कला (Outer membrane) 6 nm मोटी तथा आन्तरिक कला भी 6-8 nm चौड़ा खाली स्थान होता है। आन्तरिक कला अन्दर की ओर मुड़कर (Infoid) माइटोकॉण्डियाई शिखर (Mitochondrial crests) बनाती है।
आन्तरिक कला माइटोकॉण्डिया की दो कोष्ठों (Chambers) में बोट देती है- (1) बाहरी कोष्ठ (Outer chamber), जो कि दो कलाओं के बीच में तथा शिखरों के क्रोड (Core) में पाया जाता है। (2) आन्तरिक कोष्ठ (Inner chamber) आन्तरिक कला से घिरा होता है। आन्तरिक कोष्ठ घने प्रोटीनयुक्त पदार्थ (Dense proteinaceous material) से भरा होता है जिसे माइटोकॉण्डियल मेट्रिक्स कहते हैं। सामान्यतः यह समांगी (Homogeneous) होता है किन्तु कभी-कभी इसमें तन्तुमय या कणिकामय संरचनाएँ पाई जाती हैं।
इन कणिकाओं पर Mg तथा Ca” आयन्स का बन्धन होता है। आन्तरिक कला की वह सतह जो मेट्रिक्स की और होती है M-सतह (Al-side), जबकि जो सतह बाहरी कोष्ठ की ओर होती है. C. सतह (C-side) कहलाती है।
आन्तरिक कला की M-सतह पर कई सबूत कण (Stalked granules) जुड़े होते हैं जिन्हें प्रारम्भिक कण (Elementary particle) या फर्नाडीज-मोरन उप इकाई (Fernandez-Moran subunit) या F, काण कहा जाता है। ये कण एक-दूसरे से 10 m की दूरी पर क्रम से लगे होते हैं। एक माइटोकॉण्डिया में इनकी संख्या 104 से 105 तक हो सकती है। माइटोकॉण्डिया में दो से छः तक गोल DNA (Circular DNA) भी देखे गए हैं जो खुले हुए या एक-दूसरे से लिपटे हुए (Open or twisted) होते हैं। अतिरिक्त कला तथा मेट्रिक्स मिलकर मुख्य श्वसन इकाई बनाते हैं क्योंकि आन्तरिक कला पर इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण (Electron transfer) तथा ATP संश्लेषण तन्त्र (ATP synthesizing system) एवं मेट्रिक्स में केब चक्र (Kerbs cycle) के एन्जाइम पाए जाते हैं।
माइटोकॉण्डिया का रासायनिक संगठन (Chemical organization of Mitochondria)
माइटोकॉण्डिया रासायनिक रूप से मुख्यतः प्रोटीन व लिपिड की बनी होती है। इसके 90 से 99% भाग प्रोटीन तथा लिपिड के ही बने होते हैं। इनमें थोड़ा सा DNA व RNA भी पाया जाता है। माइटोकॉण्ड्यिा का DNA, केन्द्रकीय DNA से भिन्न किन्तु जीवाणु DNA (Bacterial DNA) से मिलता जुलता होता है। इस DNA का केन्द्रकीय DNA से कोई सम्बन्ध नहीं होता और यह अतिरिक्त गुणसूत्री माइटोकॉण्डियाई वंशागति (Extra-chromosomal mitochondrial enheritance) से सम्बन्धित होता है।
बाहरी कला (Outer membrane) में 40% लिपिड जबकि आन्तरिक कला में 20% लिपिड पाया जाता है।
माइटोकॉण्ड्यिा में विविध प्रकार के विटामिन एवं एन्जाइम तन्त्र (Enzyme system) देखे गए हैं। माइटोकॉण्ड्रिया के विभिन्न भागों में एन्जाइम निम्नलिखित प्रकार से उपस्थित होते हैं-
बाहरी कला पर पाए जाने वाले एन्जाइम
- मोनोएमाइन (Monoamine oxidase)
- फैटी एसिड कोएन्जाइम A लाइगेज (Fatty acid coenzyme A ligase)
- किन्युरेनाइन हाइड्रोजाइलेज (Kynurenine hydroxylase) (4) NADH-साइटोक्रोम-C रिडक्टेज (NADH-cytochrome-c-reductase)
बाहरी कोष्ठ (Outer chamber) में पाए जाने वाले एन्जाइम्स
- एडिनाएलेट काइनेज (Adenylate kinase)
- न्यूक्लियोसाइड डाइफोस्फोकाइनेज़ (Nucleoside diphosphokinase)
आन्तरिक कला पर पाए जाने वाले एन्जाइम्स
- श्वसन श्रृंखला के एन्जाइम्स
- निकोटिनामाइड एडिनाइन डाइन्यूक्लिओडाइड (Nicotinamide adenine dinucleotide-NAD)
- फ्लेविन एडिनाइन डाइन्यूक्लिओटाइड (Flavin adenine Dinucleotide-FAD)
- डाइफोस्फोपिरिडीन न्यूक्लिओटाइड (Diphosphopyridine Nucleotide-DPN)
- चार साइटोक्रोम (Four cytochrome)
- यूबिक्विनोन या कोएन्जाइम-Q-10 (Ubiquinone or COA Q-10)
- ATP सिन्थेटेज (ATP Synthetase)
- सक्सिनेट डिहाइड्रोजिनेज (Succinate dehydrogenase)
- बीटा-हाइड्रोक्सी ब्यूटायरेट डिहाइड्रोजिनेज (8-hydrozy dutyrate dehydrogenase)
- कार्निटिन फैटी एसिड एसिल ट्रान्सफरेज (Carnitine fatty acid acyl transferase)
मैटिक्स में पाए जाने वाले एन्जाइम्स
- मैलेट व आइसोसाइट्रेट डिहाइड्रोजिनेज (Malate and isocitrate dehydrogenases)
- फ्यूमेरेज़ व एकोनाइटेज (Fumarase and aconitase)
- साइट्रेट सिन्थेटेज (Cytrate synthetase)
- अल्फा-कीटो एसिड डिहाइड्रोजिनेज (a-Keto acid dehydrogenase)
- बीटा-ऑक्सिडेशन एन्जाइम (B-Oxidation enzyme)
माइटोकॉण्ड्रिया के कार्य (Functions of mitochondria)
माइटोकॉण्ड्यिा कोशिका का ऊर्जाग्रह होते हैं। ये लगभग सम्पूर्ण आवश्यक जैविक ऊर्जा (Biological energy) प्रदान करते हैं। इनके कार्य निम्नलिखित है-
(1) कोशिका श्वसन (Cell respiration)
माइटोकॉण्ड्यिा कोशिका श्वसन केन्द्र होते हैं कोशिका श्वसन को चार अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है।
(i) ग्लायकोलिसिस (Glycolysis)- इस अवस्था में ग्लूकोज़ का अणु विघटित होकर पायरूविक अम्ल बनाता है।
(ii) पायरूविक अम्ल का ऑक्सीकरण (Oxidation of pyruvic acid) – पायरूविक अम्ल के अणु माइटोकॉण्ड्रिया में प्रवेश करने के बाद ऑक्सीकरण द्वारा एसिटाइल कोएन्जाइम- A (Acetyl coenzyme-A) बनाते हैं। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के चार अणु प्राप्त होते हैं।
(iii) क्रेब्स साइटिक अम्ल चक्र (Kreb’s citric acid cycle) – एसिटाइल कोएन्जाइम-A, ऑक्सेलो एसिटिक अम्ल (Oxalo acetic acid) के साथ संघनित होकर साइट्रिक अम्ल बनाता है। कई चरणों के बाद ऑक्सेलो एसिटिक अम्ल उत्पन्न होता है। इस चक्र में चार डिहाइड्रोजीनेशन प्रतिक्रियाएँ (Dehydrogenation reactions) होती है तथा प्रत्येक में दो हाइड्रोजन (2H) के अणु विमुक्त होते हैं। क्रेब्स चक्र में उपयोग में आने वाले एन्जाइम मेट्रिक्स (Matrix) में पाए जाते हैं।
(iv) ऑक्सिडेटिव फॉस्फोरायलेशन (Oxidative phosphorylation) – उपरोक्त प्रतिक्रियाओं में बने हाइड्रोजन के जोड़े श्वसन श्रृंखला (Respiratory chain) अथवा इलेक्ट्रॉन वाहक श्रृंखला (Electron transport chain) पर चले जाते हैं जहाँ ऑक्सिडेटिव फॉस्फोरायलेशन होता है। इलेक्ट्रॉन वाहक श्रृंखला के एन्जाइम माइटोकॉण्ड्यिा की आन्तरिक कला पर पाए जाते हैं। हाइड्रोजन/इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण, हाइड्रोजन दाता तथा ग्राही की एक जटिल श्रृंखला द्वारा होता है जिसमें फ्लेवोप्रोटीन (Flavoprotein), कोएन्जाइम Q (Coenzyme Q) तथा सायटोक्रोम (Cytochrome) होते हैं। ऑक्सीजन अन्तिम इलेक्ट्रॉन ग्राही होती है।
(2) ATP वहन (ATP transport)
कोशिका श्वसन के फलस्वरूप बने ATP माइटोकॉण्ड्रिया में एकत्रित हो जाते हैं। कला के सिकुड़ने तथा माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर हाइड्रोस्टैटिक दबाव (Hydrostatic pressure) के बढ़ने से पानी व ATP बाहर निकल जाते हैं। इसके बाद माइटोकॉण्ड्रिया की कला ढीली हो जाती है। माइटोकॉण्ड्रिया का फूलना थायरॉक्सिन (Thyroxine) नामक हॉरमोन (Hormone) के कारण व सिकुड़ना ATP के कारण होता है।
(3) लिपिड का संश्लेषण (Lipid synthesis)
एन्जाइम का एक समूह जो फैटी अम्ल, ग्लीसरॉल और नाइट्रोजीनस क्षारों (Fatty acids, glycerol and nitrogenous bases) से लैसिथिन (Lecithin) व फॉस्फेटिडिल इथेनॉलेमाइन (Phosphatidyl ethanolamine) के संश्लेषण को नियन्त्रित करता है, अधिकांश माइटोकॉण्ड्रिया में पाया जाता है।