मध्य प्रदेश के 21 पर्यटन स्थल (21 Taourist Places of Madhya Pradesh) के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक परिवेश ने उसे पर्यटन स्थल के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान दिलवाई है। प्रदेश में फैले हुए वन और उनमें विचरण करते पशु, विविध प्रकार की संस्कृतियाँ, धार्मिक आयोजन, ऐतिहासिक स्थल, प्राकृतिक सुषमा और सुन्दरता सैलानियों का ध्यान सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल अन्य राज्यों के पर्यटक स्थलों से इस अर्थ में भिन्न हैं कि यहाँ लगभग प्रत्येक पर्यटन स्थल सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और धार्मिक दृष्टि से समान महत्व का है इस प्रकार एक ओर जहाँ
पर्यटकों के मस्तिष्क को प्राचीन स्मारक अपने अतीत का स्मरण कराते हैं, वहीं नैसर्गिक सौन्दर्य उनके मन को प्रफुल्लित कर देता है और धार्मिक महत्व का ज्ञान होते ही उनका एवं मस्तक श्रद्धा से नत हो जाता है। यहाँ सम्भवतः कोई भी ऐसा जिला न होगा जहाँ कोई दर्शनीय या पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल न हो।
मध्य प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल – Top 21 Tourist Places in Madhya Pradesh
1. पचमढ़ी
सतपुड़ा पर्वत के मनोरम पठार पर पचमढ़ी का प्राकृतिक सौदर्य ऐसा अनोखा है कि वहाँ पहुँचकर कोई भी पर्यटक मंत्रमुग्ध सा रह जाता है ग्रीष्मकाल में जब मैदानी भाग लू के तपते थपेड़ों से व्याकुल रहते हैं तब पचमढ़ी में शीतल समीर के झोंकों का स्पर्श अत्यंत आनंद- दायी तथा सुखद प्रतीत होता है पर्वतीय जलवायु स्वास्थ्यवर्धक है।
पचमढ़ी का शाब्दिक अर्थ है पाँच कुटियाँ जो अब इन विद्यमान पाँच गुफाओं की सूचक है। प्रचलित दंत कथा के अनुसार इनमें पाण्डवों ने वनवास काल का एक वर्ष बिताया था. प्राचीन वास्तुवेत्ता इन गुफाओं को बौद्धकालीन मानते हैं, जो सम्भवतः साँची और अजन्ता के बीच की संयोजक कड़ियों की प्रतीक है.
दर्शनीय स्थल
प्रियदर्शिनी, हाड़ी खोह पचमढ़ी की सबसे प्रभावोत्पादक घाटी है। अप्सरा, बिहार, रजत प्रपात, राजगिरि, लांजी गिरी, आईरीन सरोवर, जलावतरण (डचेस फॉल), जटाशंकर, छोटा महादेव, महादेव, चौरागढ़, धूपगढ़, पांडव गुफाएँ, गुफा समूह, धुआँधार, भ्रांत नीर (डीरोथी डिप), अस्तांचल, बीनवादक की गुफा (हार्पर केव) तथा सरदार गुफा देखने योग्य हैं।
2. साँची
भोपाल से 46 किमी की दूरी पर साँची स्थित है. साँची को पूर्व में ‘काकणाय’, ‘काकणादबोट’, ‘बौद्ध- श्रीपर्वत‘ नामों से जाना जाता था। साँची के पुराने स्मारकों के निर्माण का श्रेय मौर्य सम्राट् अशोक (तत्कालीन राज्यपाल विदिशा) को है जिन्होंने अपनी विदिशा निवासी रानी की इच्छानुसार साँची की पहाड़ी पर स्तूप विहार एवं एकाश्म स्तम्भ का निर्माण कराया था। शुंग काल में साँची एवं उसके निकटवर्ती स्थानों पर अनेक स्मारकों का निर्माण हुआ था. इसी काल में अशोक के ईंट निर्मित स्तूप को प्रस्तर खण्डों से आच्छादित किया गया था। स्तूप 2 और 3 तथा मंदिर का निर्माण शुंगकाल में ही हुआ था। भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा साँची के निकटवर्ती स्थानों पर खुदाई में साँची सदृश अन्य स्तूप श्रृंखला का पता चला है। साँची के स्तूप विश्व धरोहर (Unesco would heritage site) में सम्मिलित हैं.
साँची बौद्ध स्तूपों के लिए विश्वविख्यात है तथा यहाँ बड़ी संख्या में बौद्ध धर्मावलम्बी आते हैं। यहाँ तीन स्तूप हैं – पहला स्तूप अन्य दो स्तूपों से बड़ा है इसलिए इसे मुख्य स्तूप कहते हैं। इसका व्यास 36.5 मीटर है और ऊँचाई 16-4 मीटर है. स्तूपों के तोरण द्वार पर जातक कथाएँ व बुद्ध के जीवन की जन्म से मोक्ष प्राप्ति तक की घटनाएँ अंकित हैं।
दर्शनीय स्थल
बौद्ध विहार, अशोक स्तंभ, महापात्र, गुप्तकालीन मंदिर तथा संग्रहालय यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल है
3. खजुराहो
पत्थरों पर तराशी गई सुंदर कला की नगरी खजुराहो मध्य प्रदेश ही गीं, अपितु हिन्दू स्थापत्य एवं शिल्पकला की दृष्टि से भारत के प्रमुख पर्यटन केन्द्रों में तीसरा स्थान रखती है। ऐसा कहा जाता है कि चन्देल राजाओं के समय मुख्य द्वार पर सोने के झिलमिलाते खजूर आकृति के दो तोरण द्वार थे। इसी आधार पर इसका नाम ‘खर्जूरवाहक’ पड़ा और कालान्तर में ‘खजुराहो’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहाँ के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण चन्देल राजाओं ने 950-1050 ईस्वी के मध्य करवाया था। इन मंदिरों की संख्या 85 थी, लेकिन अब इनकी संख्या कम हो गई है. ये मंदिर मध्ययुगीन भारत की शिल्प एवं वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट नमूने हैं। यहाँ दूर-दूर तक फैले मंदिरों की दीवारों पर देवताओं तथा मानव आकृतियों का अंकन इतना भव्य एवं कलात्मक हुआ है कि दर्शक देखकर मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। यहाँ की मूर्तियों में सजीव मैथुन, काम और रति- क्रीड़ाएँ, सांसारिक निष्कपटता तथा स्वच्छन्द एवं उन्मुक्त प्रेम का प्रतीक है, जोकि शिल्पी की कला का वास्तविक चित्रण है. खजुराहो के मन्दिरों में विश्व धरोहर के रूप में दर्ज किया गया है.
दर्शनीय स्थल
पश्चिम समूह के मंदिर-कंदरिया महादेव, चौसठ योगिनी, चित्रगुप्त मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा मातंगेश्वर मंदिर पूर्वी समूह-पार्श्वनाथ, मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ मंदिर दक्षिण समूह- दूल्हादेव मंदिर तथा चतुर्भुज मंदिर। इसके अलावा बनी सागर बाँध तथा स्नेह प्रपात भी दर्शनीय है।
4. मांडू (मांडव)
इन्दौर से 100 किमी दूर विंध्याचल पहाड़ियों में स्थित माण्डू शताब्दियों से अनेक हिन्दू और मुस्लिम शासकों के अधीन रहा है। प्रकृति की मनोहारी छटा ने मांडू के सौंदर्य को निखार दिया है। सैकड़ों फुट नीचे नर्मदा का विशाल पाट फैला है जिसकी सोंधी गंध समूचे परिवेश को अति रोमांचक बना देती है। यहाँ निर्मित मंडपो, स्तंभ युक्त ई कक्षों, गुम्बदों और बुर्जों से अतीतकाल की अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हैं मांडू को बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रणय गाथा से भी जोड़ा गया है। समुद्र से 2000 फुट की ऊँचाई पर विंध्य पर्वतमाला की गोद में स्थित इस सुरक्षित स्थल को मालवा के परमार राजाओं ने अपनी राजधानी बनाया था. यहाँ का प्रत्येक स्थापत्य भारतीय वास्तुकला का भव्य नमूना है.
दर्शनीय स्थल
मांडू का परकोटा-इसमें 12 दरवाजे हैं जो रामपोल, तारापुर दरवाजा, जहाँगीर दरवाजा, दिल्ली दरवाजा आदि नामों से जाने जाते हैं। यह निर्माण अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त जहाज महल, हिंडोला महल, होशंगशाह का मकबरा, जामा मस्जिद, अशर्फी महल, रेवा कुण्ड, रूपमती मंडप, नीलकंठ, नीलकंठ महल, हाथी महल तथा लोहानी गुफाएँ आदि दर्शनीय हैं।
5. उज्जैन
पुण्य-सलिला क्षिप्रा के पूर्वी तट पर स्थित भारत की महाभागा नगरी उज्जयिनी को भारत की सांस्कृतिक-काया का मणि-चक्र माना गया है। पुराणों में उज्जयिनी, अवन्तिका, अमरावती, प्रतिकल्पा, कुमुद्धती आदि नामों से इसकी महिमा गायी गई है। महाकवि कालिदास द्वारा वर्णित “श्री विशाला विशालौ एवं पुराणों में वर्णित सार्वभौम” नगरी यही है। उज्जैन का सिंहस्थ पर्व प्रत्येक बारह वर्षों के अंतराल से कुम्भा पर्व रूपी दुर्लभ अवसर पर मनाया जाता है। श्रीकृष्ण-सुदामा ने यहीं संदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी।
दर्शनीय स्थल
यहाँ महाकाल मंदिर परिसर, मंगलनाथ, काल भैरव, विक्रान्त भैरव, हरसिद्धि चौसठ- योगिनी, गढ़कालिका, नगर कोट की रानी, गोपाल मंदिर, अनंत नारायण मंदिर, अंकपात, त्रिवेणी संगम पर नवग्रह मंदिर, चिन्तामण-गणेश, अवन्ति-पार्श्वनाथ मंदिर, ख्वाजा शकेब की मस्जिद, बोहरों का रोजा, जामा मस्जिद, शाही मस्जिद, वैश्य टेकरी का स्तूप-स्थल, कालियादह महल, ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर, पीर-मत्स्येन्द्र की समाधि, जय- सिंहपुरा, दिगम्बर जैन संग्रहालय, वाकणकर स्मृति जिला पुरातत्व संग्रहालय, भारतीय कला भवन, दुर्गादास राठौर की छत्री आदि दर्शनीय स्थल हैं।
6. भेड़ाघाट
भेड़ाघाट (जबलपुर) में संगमरमरी चट्टानों पर तेज प्रवाह से गिरता नर्मदा नदी का जल पर्यटकों को आकर्षित करता है। जबलपुर से 21 किमी दूर संगमरमर की ऊँची दूधिया चट्टानों के बीच बहती हुई नर्मदा नदी अति सुंदर दृश्य उपस्थित करती है. इस स्थल पर पर्यटकों के लिए नौका विहार की सुविधा है और उनके मध्य नर्मदा की निर्मल जलधारा बहती है भेड़ाघाट के समीप प्रसिद्ध चौसठ योगिनी का गोल तथा भव्य मंदिर है जिसमें 81 मूर्तियाँ हैं। गोल में गौरी शंकर का सुविख्यात मंदिर है जिसमें शिव पार्वती की नन्दी पर आसीन प्राचीन सजीव मूर्ति विद्यमान है।
7. चित्रकूट
प्राचीनकाल में तपस्या और शांति का स्थल चित्रकूट ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बाल अवतार का स्थान माना जाता है वनवास के समय भगवान राम, सीता, लक्ष्मण महर्षि अत्रि तथा सती अनुसूया के अतिथि बनकर यहाँ रहे थे भक्त शिरोमणि तुलसीदास जी आत्मिक शांति की खोज में यहाँ आये थे। जबकि जहाँगीर के क्रोध से पीड़ित अकबर के नौ रत्नों में से एक महाकवि अब्दुल रहीम खानखाना ने यहाँ शरण ली थी। प्राकृतिक सुषमा के बीच चित्रकूट में पर्यटक मानसिक शांति प्राप्त करते हैं।
दर्शनीय स्थल
रामघाट में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित घाटों की कतारें हैं। कामदगिरि, जानकी कुण्ड, सती अनुसूया, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा, भरत कूप दर्शनीय हैं।
8. अमरकंटक
भारत की प्रमुख सात नदियों में से अनुपम नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकण्टक प्रसिद्ध तीर्थ और नयनाभिराम पर्यटन स्थल है। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में मैकल पर्वत- मालाओं में स्थित अमरकण्टक भारत के पवित्र स्थलों में गिना जाता है। नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। नर्मदा का उद्गम यहाँ एक कुण्ड से तथा सोनभद्र का पर्वत शिखर से है।
दर्शनीय स्थल
अमरकण्टक के मन्दिर जिनकी संख्या 24 है कपिलधारा जलप्रपात, सोन मुंग, माई की बगिया, – कबीर चौरा, भृगु कमण्डल और पुष्कर बाँध देखने योग्य है। घाटी में बसे अमरकण्टक ग्राम में भव्य शिखरों वाले मंदिर और कोई धर्मशालाएँ हैं।
9. ग्वालियर
ग्वालियर राज्य की यह पुरातन राजधानी आज भी अपने प्राचीन वैभव की कहानी कह रही है। ग्वालियर शहर सदियों तक अनेक राजवंशों का आश्रय स्थल रहा और प्रत्येक के राज्यकाल में इसमें नए आयाम जुड़े. यहाँ के योद्धाओं, राजाओं, कवियों, संगीतकारों और साधू-संतों ने अपने योगदान से इस नगर को अधिकाधिक समृद्धि और सम्पन्नता प्रदान की और यह नगर सारे देश में विख्यात हुआ। विशाल ग्वालियर दुर्ग का निर्माण 1500 वर्ष पूर्व राजा सूरज सेन ने प्रसिद्ध ऋषि गालव की स्मृति में करवाया था. इस किले को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ तथा भारत के समस्त दुर्गों के कण्ठहार में मण्डित मणि भी कहा जाता है। मुगल बादशाह जहाँगीर ने छठवें सिक्ख गुरु हरगोविन्दसिंह को इसी दुर्ग में बुलाया था. दुर्ग पर निर्मित विशाल बन्दी छोड़ गुरुद्वारा इसी का प्रतीक है। मध्यकाल के इतिहास में इस दुर्ग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
दर्शनीय स्थल
ग्वालियर दुर्ग बलुए पत्थर की सीधी चट्टानों पर खड़ा हुआ समूचे शहर की दृष्टि से ऊँचे आसन पर विराजमान है। गूजरी महल, राजा मानसिंह तोमर ने गूजर रानी मृगनयनी के प्रेम में बनवाया मान मंदिर, सूरजकुण्ड, तेली का मंदिर, सास-बहू का मंदिर, जयविलास महल, रानी लक्ष्मीबाई की अश्वारोही मूर्ति, संग्रहालय, तानसेन की समाधि, गौस मोहम्मद का मकबरा, रानी लक्ष्मीबाई की समाधि, कला वीथिका, नगरपालिका संग्रहालय, चिड़ियाघर, गुरुद्वारा, सूर्य मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं. प्रति वर्ष यहाँ मेला लगता है।
10. शिवपुरी
ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजाओं की ग्रीष्म- कालीन राजधानी रह चुकी शिवपुरी आज भी अपने सुन्दर राजप्रासादों तथा संगमरमर से निर्मित अलंकृत छतरियों के द्वारा विगत राजसी विरासत की याद दिलाती है।
दुर्लभ वन्य प्राणियों और पक्षियों के लिए यहाँ के अभयारण्य ने शिवपुरी के शानदार अतीत को अत्यंत स्पंदनशील बना दिया है।
दर्शनीय स्थल
माधव राष्ट्रीय उद्यान (156 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह उद्यान विभिन्न प्रकार की वनस्पति एवं विविध प्राणियों से समृद्ध है राष्ट्रीय उद्यान के अतिरिक्त सिंधिया राजवंश की कलात्मक छतरियाँ, गुलाबी रंग का माधव बिलास प्रसाद, अभयारण्य के बीच उसके सर्वोच्च बिन्दु पर स्थित कंगूरेदार जॉर्ज कैसल, संख्या सागर बोट क्लब, भदैया कुण्ड तथा वीर तात्या टोपे की विशाल मूर्ति यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
11. ओंकारेश्वर
‘ऊँ’ की पवित्र आकृति स्वरूप यह द्वीप सदृश मनोरम स्थल अनंतकाल से तीर्थ के रूप में मान्य है। यहाँ नर्मदा- कावेरी के संगम पर ओंकार मांधाता के मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग पुराण प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
दर्शनीय स्थल
ओंकार मांधाता, सिद्धनाथ मंदिर, चौबीस अवतार, सप्तमातृ का मंदिर तथा काजल रानी गुफा आदि यहाँ हैं।
12. महेश्वर
इतिहास प्रसिद्ध सम्राट् कार्तवीर्य अर्जुन की प्राचीन राजधानी महिष्मति ही आधुनिक महेश्वर है. इसका उल्लेख रामायण तथा महाभारत में भी मिलता है। रानी अहिल्याबाई होल्कर ने यहाँ की महिमा को चार-चाँद लगाए. महेश्वर के मंदिर तथा दुर्ग परिसर के सौंदर्य में अपार आकर्षण विद्यमान है।
दर्शनीय स्थल
महेश्वर में सम्पूर्ण नर्मदा तट और अहिल्या घाट के करीब तीन किमी दूर सहस्त्रधारा तक नर्मदा में नौका विहार में एक पावन अनुभव होता है। अहिल्या संग्रहालय, राजेश्वरी मंदिर, पेशवाघाट, होल्कर परिवार की छतरियाँ, राजगद्दी और रजवाड़ा, घाट तथा मंदिर दर्शनीय हैं. महेश्वर की साड़ियाँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
13. भोपाल
ग्यारहवीं सदी के भोजपाल तथा तत्पश्चात् भूपाल नामक इस नगर को परमारवंशी राजा भोज ने बसाया था। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल एक बहुरंगी तस्वीर पेश करती है। एक ओर पुराना शहर है, जहाँ लोगों की चहल- पहल उसके बीच बाजार है, पुरानी सुन्दर मस्जिदें तथा महल हैं। दूसरी तरफ नया शहर बसा हुआ है जिसके सुन्दर पार्क और हरे-भरे वृक्ष गहरी राहत देते हैं। भोपाल पाँच पहाड़ियों पर बसा है तथा इसमें दो झीलें हैं. यहाँ की जलवायु सम है।
दर्शनीय स्थल
ताज-उल-मसजिद, जामा मस्जिद, लक्ष्मीनारायण मंदिर, बिड़ला संग्रहालय, शौकत महल और सदर मंजिल, भारत भवन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, राजकीय संग्रहालय, गांधी भवन, वन विहार, चौक बड़ी और छोटी झील, मछली घर इत्यादि दर्शनीय हैं।
14. बाँधवगढ़
शहडोल जिले में विन्ध्य पर्वतमाला की दूरस्थ पहाड़ियों 5 में 448 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला छोटा किन्तु सघन राष्ट्रीय उद्यान है, सफेद शेर की मातृभूमि बाँधवगढ़ में बाघों की – सघनता पूरे भारत की तुलना में सबसे अधिक है। इस भू- भाग की घाटियों और ढलानों में साल-वन फैले हुए हैं जो पहाड़ियों तथा उद्यान के दक्षिण और पश्चिम में शुष्क क्षेत्र होने के कारण पतझरीय वनों के रूप में बदलते जाते हैं। यहाँ बाँस सब जगह पाया जाता है।
दर्शनीय स्थल
यहाँ लगभग दो हजार वर्ष पूर्व निर्मित – दुर्ग अनेक राजवंशों की निशानी हैं।
15. कान्हा
साल और बाँसों से भरा कान्हा का जंगल, झूमते- लहराते घास के मैदानों और टेढ़ी-मेढ़ी बहने वाली नदियों की निसर्ग भूमि है। सन् 1955 में एक विशेष कानून के द्वारा कान्हा राष्ट्रीय उद्यान अस्तित्व में आया। यह पशु- पक्षियों के लिए एक निर्भय आश्रय स्थल बन गया है।
दर्शनीय स्थल
बमनीदादर, स्तनपायी प्राणियों की जातियाँ तथा कान्हा का पशु-पक्षी संसार दर्शनीय है।
16. ओरछा
ओरछा राज्य की स्थापना 16वीं सदी में बुन्देला राजपूत रुद्रप्रताप ने की थी. ओरछा के प्रांगण में अनेक छोटे मकबरे और स्मारक हैं। इनमें से प्रत्येक का रोचक इतिहास है। मध्यकाल की यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी है। 16वीं शताब्दी में राजा वीरसिंह जूदेव के समय ओरछा ने भारी ख्याति प्राप्त की थी, क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आजाद की साधना स्थली के नाते भी ओरछा विख्यात है।
दर्शनीय स्थल
जहाँगीर महल, राजमहल, राय प्रवीण महल, रामराजा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, फूलबाग, दीवाल हरदौल महल, सुन्दर महल, छतरियाँ, शहीद स्मारक आदि दर्शनीय स्थल हैं।
17. भोजपुर
जनश्रुतियों और किंवदन्तियों के रूप में अमरता प्राप्त धार के महान् सम्राट् राजा भोज ने इसकी स्थापना की थी। यहाँ का भव्य शिवमंदिर मध्य भारत का सोमनाथ कहलाता है।
दर्शनीय स्थल
भोपाल से 28 किमी दूर भोजपुर की प्रसिद्धि भव्य शिवमंदिर और विशाल बाँध के कारण है। यह मंदिर भोजेश्वर मंदिर के रूप में माना जाता है। जैन मंदिर भी दर्शनीय है।
18. भीम बेठका
विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं की उत्तरी छोर से घिरा हुआ भीम बेठका भोपाल से 40 किमी दूर दक्षिण दिशा की ओर स्थित है। भीम बेठका समूह मानव इतिहास का एक बहुमूल्य इतिवृत्त और समृद्ध पुरातात्विक संकुल माना जाता है. भीम बेठका को विश्व धरोहर समिति ने विश्व धरोहर के लिए चुना है। यह प्रदेश का तीसरा स्थान है जिसका चयन विश्व धरोहर के लिए किया गया है। इसके पूर्व खजुराहो के मन्दिर और साँची के स्तूप भी विश्व धरोहर के रूप में शामिल किए जा चुके हैं।
दर्शनीय स्थल
यहाँ 500 से अधिक गुफाओं में प्रागैतिहासिक गुफावासियों की दैनंदिन जीवनचर्या के मनोहारी चित्र दर्शाए गए हैं।
19. विदिशा
विदिशा, बेसनगर तथा भेलसा के नाम से प्रसिद्ध यह क्षेत्र प्राचीन इतिहास की समृद्ध धरोहर के रूप में साँची से केवल 10 किमी दूर बेतवा और बेस नदियों के बीच अवस्थित है। विदिशा नगर का प्राचीन नाम महामालिस्तान या मेवासा था. यह क्षेत्र शुंग, नाग, सातवाहन तथा गुप्त सम्राटों के अधीन रहकर अत्यंत समृद्धि को प्राप्त हुआ था। सम्राट् बनने के पूर्व अशोक यहाँ के राज्यपाल रहे थे। विदिशा का उल्लेख महाकवि कालिदास की महान् कृति मेघदूत में मिलता है। विदिशा बौद्ध और जैन सम्प्रदायों का भी एक शक्तिशाली केन्द्र रहा है। दर्शनीय स्थल लोहांगी शिला, गुम्बज, बीजा मंडल आदि है हेलियोदोरस का स्तंभ खम्बा बाबा’ हेलियोदोरस द्वारा वासुदेव के सम्मान में स्थापित गरुड़ स्तंभ है।
20. ग्यारसपुर
सांची से 41 किमी दूर स्थित यह स्थान मध्ययुग का महत्वपूर्ण स्थान है। स्तंभों पर निर्मित दो मंदिरों के भग्नावशेषों की नक्काशी तत्कालीन कला की मुँह बोलती तस्वीर है। वज्र भाद और मालादेवी के नक्काशीदार स्तंभ दर्शनीय है।
21. उदयपुर
यह स्थान भोपाल से विदिशा तथा गंजबासौदा होते हुए 90 किमी की दूरी पर है। यहाँ का विशाल कंठेश्वर मंदिर परमार कालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। बीजा मंडल, शाही मस्जिद महल, पिसनहारी का मंदिर आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
मध्यप्रदेश की प्रमुख प्राचीन गुफाएँ – Major ancient caves of Madhya Pradesh
1. उदयगिरि की गुफाएँ
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में उदयगिरि की बीस गुफाएँ हैं। इन्हें उदयगिरि की पहाड़ियों की पूर्वी ढाल को खोदकर तराशा गया है। इन गुफाओं में गुफा नं. 1-20 जैन धर्म से सम्बद्ध है। गुफा नं.-5 में वराह की विशाल प्रतिमा है जो पुराणों में वर्णित पृथ्वी के उद्धार की कहानी पर आधारित है। उदयगिरि की गुफाएँ ईसा के बाद चौथी और पाँचवीं शताब्दी की हैं जो गुप्त वंश की अद्भुत निर्माण कला का सुन्दर उदाहरण हैं।
2. भर्तृहरि गुफाएँ
उज्जैन से 12 किलोमीटर कालिया- देह महल की ओर भर्तृहरि गुफाएँ हैं। इन गुफाओं की कुल संख्या 9 है जिनमें 4 खण्डित हो चुकी हैं। इन गुफाओं का निर्माण राजा भर्तृहरि की स्मृति में परमार वंश के राजाओं ने ग्यारहवीं शताब्दी में कराया था। गुफाओं में सभी चित्र रंगीन हैं जो प्राचीन उज्जैन नगर की सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक हैं।
3. बाघ की गुफाएँ
माण्डू से 125 किलोमीटर, धार से 97 किलोमीटर और इंदौर से 154 किलोमीटर दूर स्थित बाघ की गुफाएँ विन्धयाचल की पहाड़ियों में स्थित है। बाघ की गुफाएँ अजन्ता की गुफाओं के समान कलापूर्ण भित्ति-चित्रों से युक्त हैं। इन चित्रों को पाँचवीं और सातवीं शताब्दी के मध्य चित्रित किया गया होगा. इन्हें बौद्ध चित्रों के प्राण कहा जाता है।
इन गुफाओं का निर्माण ऊँची-ऊँची पहाड़ियों को काटकर किया गया है. ये पहाड़ियाँ बाघ नदी के किनारे स्थित हैं. प्रारम्भ में यहाँ नौ गुफाएँ थीं, लेकिन अब केवल पाँच रह गई हैं. ये गुफाएँ बौद्ध विहारों के रूप में ईसा की पाँचवीं सदी में निर्मित की गई थीं।
मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटन राजमहल – Major tourist palaces of Madhya Pradesh
1. गूजरी महल
ग्वालियर के प्रख्यात राजा मानसिंह तोमर ने सन् 1486-1516 के मध्य अपनी प्रेमिका मृगनयनी जो गूजर जाति की थी, के लिए ग्वालियर के दुर्ग में एक कलात्मक एवं सुंदर महल बनवाया था, जिसे गूजरी महल कहते हैं.
2. जय विलास महल
ग्वालियर नगर में जीवाजी राव सिंधिया का निवास जय विलास राजमहल कहलाता है. यहाँ का संग्रहालय देखने योग्य है. यह महल पाश्चात्य नमूने पर बना है।
3. मोती महल (ग्वालियर)
ग्वालियर नगर में ग्वालियर के राजा जीवाजी राव का सुन्दर एवं कलात्मक राजमहल था, जहाँ कुछ दिन पूर्व तक मध्य प्रदेश का ए.जी. ऑफिस था
4. मोती महल (मंडला)
मंडला से लगभग 16 किलो- मीटर दूर रामनगर के सघन जंगल में 25 मीटर की ऊँचाई पर 65 मीटर लम्बा और 61 मीटर चौड़ा आयताकार महल बना है, जिसे मोती महल कहते हैं. यह महल गोंड-नरेश हृदय शाह ने बनवाया था. यह तीन मंजिला है.
5. बघेलिन महल
मोती महल, मंडला के पूर्व में तीन किलोमीटर दूर नर्मदा के किनारे एक रमणीक स्थल पर बघेलिन महल बना है. यह पर्यटकों का मुख्य केन्द्र है.
6. मदन महल
मदन महल जबलपुर नगर में पहाड़ी पर स्थित है. इसे गोंड राजा मदन शाह ने सन् 1200 ई. में बनवाया था यह उनका राजप्रसाद था. मदन महल के निकट का कई किलोमीटर का भाग पत्थर की विशालकाय